सफलता की एक खास बात होती है की, वो मेहनत करने वालों पर फ़िदा हो जाती है। Thyrocare के फाउंडर ए. वेलुमणि ने भी अपनी मेहनत के दम पर सफलता को अपने काबू में किया। एक समय था जब वो कोयंबटूर में सिर्फ 150 रुपये की नौकरी कर रहे थे। लेकिन आज वो Thyrocare जैसे बड़ी कंपनी के मालिक हैं, जो करोड़ो का मुनाफा कमा रही है।
अर्न मनी गुरु के आज के आर्टिकल में चलिए जानते हैं, एक केमिस्ट की दुकान पर काम करने वाले युवक ने 3500 करोड़ का कारोबार आखिर कैसे खड़ा किया?
गरीबी में बीता ए. वेलुमणि का जीवन
ए. वेलुमणि का शुरुआती जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा। उनका जन्म तमिलनाडु में कोयंबटूर के एक गरीब परिवार में हुआ। पिता की तबियत खराब थी, तो घर चलाने के लिए उनकी मां दूध बेचने का काम करने लगी। कई सालों तक उनकी मां ने यही काम करके घर का खर्चा चलाया। पैसों की कमी के चलते ए. वेलुमणि ने अपनी सारी पढ़ाई सरकारी स्कूल और कॉलेज से ही पूरी की।
150 रुपये की सैलरी में केमिस्ट की दुकान पर किया काम
19 साल की उम्र में अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए वेलुमणि ने कोयंबटूर की एक केमिस्ट की दुकान पर काम करना शुरु किया। यहां उन्हें वेतन के तौर पर हर महीने 150 रुपये मिलते थे। इस सैलरी में से वो 100 रुपये अपनी मां के पास भेज देते थे, और 50 रुपये अपने पास रखते थे ताकि वो अपना खर्चा चला सके।
कुछ समय बाद ये कंपनी बंद हो गई, और वेलुमणि को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। अचानक नौकरी का चले जाना निराशाजनक था, लेकिन वेलुमणि ने हार नहीं मानी। विपरीत परिस्थियों में भी उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा।
भाभा एटॉमिक रिसर्ट सेंटर में मिली नौकरी
विपरीत परिस्थियों में भी वेलुमणि ने अपनी पढ़ाई को जारी रखा, और मुंबई के भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) में लैब अस्टिटेंट की पोस्ट के लिए अप्लाई कर दिया । BARC में सेलेक्शन होने के बाद वेलुमणि को सैलरी के तौर पर महीने के 800 रुपये मिलने लगे। इसी दौरान वेलुमणी ने अपनी PHD की पढ़ाई भी पूरी की। जॉब के दौरान ही उनकी मुलाकात सुमति से हुई, कुछ समय बाद दोनों ने शादी कर ली।
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नौकरी छोड़कर बिजनेस में आजामाया हाथ
रिसर्च सेंटर में 14 साल काम करने के बाद वेलुमणि को खुद की कंपनी खोलने का विचार आया और उन्होंने नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के कुछ समय बाद 1995 में उन्होंने अपनी सेविंग्स और PF के पैसे से मुंबई में अपनी पहली लैब खोली। इस लैब का नाम रखा गया Thyrocare । शुरुआत में इस लैब का उद्देश्य थॉयरॉइड की जांच करना था।
शुरुआत में ग्राहकों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपनी कंपनी में दूसरे टेस्ट भी शामिल किए। धीरे-धीरे ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी। शुरुआत में वेलुमणी ने अपने बिजनेस से कोई भी मुनाफा नहीं कमाया, वो जितना भी पैसा कमाते थे, वो अपनी कंपनी में ही इन्वेस्ट कर देते थे। 2016 में उन्होंने कंपनी को लिस्ट करवाया था, यह कंपनी आज पूरे भारत में अपनी पहचान बना चुकी है।
खड़ा किया 3500 करोड़ रुपये का कारोबार
Thyrocare से मुनाफा मिलने के बाद धीरे-धीरे वेलुमणि ने अपने बिजनेस को बढ़ाना शुरु किया। आज थायरोकेयर टेक्नोलॉजीज लिमिटेड दुनिया की सबसे बड़ी थॉयरॉइड टेस्टिंग कंपनी है। इस कंपनी के 950 से अधिक ब्रांडेड और 5,000 से ज्यादा नॉन-ब्रांडेड आउटलेट्स हैं, जहां वो अपने ग्राहकों को कम कीमत पर टेस्ट करवाने की सुविधा प्रदान कर रही है। मई 2016 में कंपनी का IPO आया था। आज इस कंपनी की वैल्यु लगभग 3500 करोड़ रुपये हैं।
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अंतिम शब्द –
कहते हैं कि सफलता उन्हीं को मिलती है, जो असफल होने से नहीं डरते । ए. वेलुमणि इसी कहावत का एक परफेक्ट उदाहरण है। वेलुमणि एक साधारण व्यक्ति थे जिन्होंने 150 रुपये की नौकरी से अपने करियर की शुरुआत की थी। परेशानियां उनके जीवन में भी आईं लेकिन उन्हें नजरअंदाज करके, आज अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने 3500 करोड़ रुपये का कारोबार खड़ा कर दिया है।
ए. वेलुमणि भारत के उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं, जो खुद के दम पर कुछ बड़ा करना चाहते हैं। यह स्टोरी आपको कुछ बड़ा करने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। अगर आपको भी अपने सपने पूरे करने हैं, तो मेहनत का हाथ पकड़कर हमेशा आगे बढ़ते रहें।