बार-बार कोशिश करने के बाद भी जब सफलता हाथ नहीं लगती है, तो अक्सर हम मायूस हो जाते हैं। हमे लगने लगता है कि शायद कामयाबी हमारी किस्मत में ही नहीं है, और यह सोचकर हम हार मान लेते हैं। लेकिन यही हमारे संघर्ष का मुख्य बिंदु होता है, जहां हमें खुद को मोटिवेट रखना होता है।
बिना संघर्ष के सफलता कभी भी आपके हाथ नहीं आने वाली है। ऐसे में खुद को मोटिवेट रखने के लिए आज हम आपके सामने लेकर आएं हैं ‘संघर्ष से सफलता की कहानियां’। यहां हम आपको भारत के 10 ऐसे रियल लाइफ हीरोज की कहानी बताएंगे, जो बार-बार असफल हुए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने सफलता हासिल की, और आज वो हजारों लोगों को नौकरियां भी दे रहे हैं। ये रियल लाइफ हीरोज कौन-कौन हैं, और इनके सफलता के पीछे की कहानी क्या है, चलिए जानते हैं –
भारत के 10 संघर्षशील व्यक्तियों की संघर्ष से सफलता की कहानियाँ
1. संदीप माहेश्वरी (Imagesbazaar)
संदीप माहेश्वरी उन लाखों लोगों में से एक है जिन्होंने सफलता, खुशी और संतुष्टि की तलाश में संघर्ष किया। आज आप उन्हें मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर ज्यादा जानते होंगे। उनके यूट्यूब चैनल पर मिलियन्स में सब्सक्राइबर हैं। लेकिन मोटिवेशनल स्पीकर होने के साथ-साथ संदीप एक आंत्रप्रेन्योर और सफल बिजनेसमैन भी हैं।
संदीप माहेश्वरी imagesbazaar.com के फाउंडर ( संस्थापक) हैं। जहां आप फोटोज खरीद और बेच सकते हैं। आज इस वेबसाइट के पास भारतीय फोटोज का सबसे बड़ा कलेक्शन हैं। लेकिन संदीप माहेश्वरी को ये सफलता किसी थाली में परोसी हुई नहीं मिली, उन्होंने इसके लिए संघर्ष किया। कई बार वो असफल भी हुए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
कॉलेज ड्रॉप आउट से मोटिवेशनल स्पीकर तक का सफर (Sandeep Maheshwari Success Story)
संदीप माहेश्वरी का जन्म 28 सितंबर 1980 को नई दिल्ली में हुआ था। मिडिल क्लास से होने की वजह से संदीप को अपने जीवन में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। 12वीं के बाद उन्होंने पढ़ाई के साथ ही जॉब करनी शुरू कर दिया। नौकरी के साथ उन्होंने किरोरीमल कॉलेज से बीकॉम करने का निर्णय लिया, पर परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी।
पढ़ाई छोड़ने के बाद संदीप ने मॉडलिंग में अपना करियर आजमाया, लेकिन उन्हें बहुत जल्दी ही पता चल गया कि वो इस फील्ड में सफल नहीं हो सकते हैं। इसके बाद उन्होंने फोटोग्राफी में हाथ आजमाना शुरु किया। इस दौरान उन्होंने Audio visual pvt. Ltd. नाम की एक कंपनी खोली, जिसे कुछ समय बाद बंद करना पड़ा। संदीप माहेश्वरी ने 2002 में 3 दोस्तों के साथ मिलकर एक और कंपनी खोली, लेकिन 6 महीने बाद इसे भी बंद करना पड़ा।
बार-बार मिल रही असफलताओं ने संदीप माहेश्वरी को परेशान तो किया, लेकिन वो उनके हौंसलों को नहीं तोड़ पाई। संदीप माहेश्वरी ने फोटोग्राफी को अपना करियर बनाने का सौचा। उन्होंने 2006 में इमेजेस बाजार की स्थापना की। देखते ही देखते ये वेबसाइट फेसम हो गई, और आज यह भारतीय तस्वीरों का सबसे बड़ा हब बन गया है।
बिजनेस में सफल होने के बाद आज संदीप माहेश्वरी अपने अनुभव से लोगों को सही राह चुनने के लिए मोटिवेट कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने यूट्यूब पर चैनल भी बनाया है। संदीप माहेश्वरी के यूट्यूब चैनल पर वर्तमान में 28.5M सब्सक्राइबर हैं।
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2. चंदूभाई विरानी (Balaji Wafers)
बालाजी वेफर्स गुजरात की गलियों से निकलकर आज एक फेसम नमकीन ब्रांड बन चुकी है। इस कंपनी के मालिक चंदूभाई विरानी एक साधारण परिवार में जन्में थे, जिन्होंने पोस्टर चिपकाने और कैंटीन में काम करने जैसे बहुत से कार्य किए। लेकिन उनके एक फैसले ने आज उनकी जिंदगी को बदल कर रख दिया। ये फैसला क्या था, चलिए जानते हैं –
10,000 से 4,000 करोड़ रुपये तक का सफर (Balaji Wafers Success Story)
चंदूभाई विरानी के पिता एक किसान थे, जिन्होंने अपने तीन बेटों को कारोबार शुरु करने के लिए 20,000 रुपये दिए। अपने हिस्से के पैसे से चंदूभाई ने कृषि उत्पादों और कृषि उपकरणों का कारोबार शुरु किया, लेकिन ये सफल ना हो सका। इसके बाद उन्होंने एक कैंटीन में काम करना शुरू कर दिया। इस काम में धीरे-धीरे उनकी कमाई बढ़ने लगी तो वो अपनने परिवार के साथ राजकोट में शिफ्ट हो गए।
नौकरी के दौरान ही चंदूभाई ने थिएटर में वेफर्स की मांग देखी, और उन्होंने चिप्स बनाने का निर्णय लिया। चंदूभाई ने 10,000 रुपये से अपने घर पर चिप्स बनाने का कारोबार शुरु किया। शुरु-शुरु में उन्होंने इन चिप्स को 25-30 सप्लायर्स को बेचा, जिसे लोगों के द्वारा काफी पसंद किया गया। 1984 में उन्होंने अपने बिजनेस को ‘बालाजी’ नाम दिया। 1989 में उन्होंने 50 हजार रुपये का लोन लेकर राजकोट में फैक्ट्री लगाई। धीरे-धीरे उनका काम बढ़ने लगा, तो उन्होंने अपनी कंपनी का नाम बदलकर Balaji Wafers कर दिया।
वेफर्स की दुनिया में बालाजी वेफर्स का सीधा मुकाबला अंकल चिप्स, बिन्नीज जैसे बड़े-बड़े ब्रांड्स से था, लेकिन अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी को मैंटेन रखते हुए, चंदूभाई वीरानी से सभी कॉम्पिटीटर्स को तगड़ी टक्कर दी। आज इस कंपनी का राजस्व 4,000 करोड़ रुपये हैं। जो रोजाना लगभग 6.5 मिलियन किलो आलू चिप्स और 10 मिलियन किलो नमकीन बनाती है।
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3. विदित आत्रेय (Meesho)
विदित आत्रेय भारत की फेसम ई-कॉमर्स कंपनी Meesho के फाउंडर हैं। IIT दिल्ली से इंजीनियरिंग करने के बाद विदित ने कई कंपनियों में नौकरी की। विदित के पिता की इच्छा थी, कि उनका बेटा IAS बनकर देश की सेवा करें, लेकिन उन्होंने नौकरी और सरकारी नौकरी को छोड़कर तीसरा ही रास्ता चुना।
नौकरी छोड़कर खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी (Meesho Success Story)
इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद विदित को ITC में अच्छे पैकेज पर नौकरी मिल गई। इसके बाद उन्होंने ICC असिस्टेंट मैनेजर और फिर InMobi में एसोसिएट मैनेजर के पद पर काम किया। नौकरी के दौरान विदित का झुकाव बिजनेस पर ही था। विदित ने अपने दोस्त संजीव बरनवाल के साथ मिलकर बिजनेस करने का सोचा। दोनों का पहला स्टार्टअप फेल हो गया।
इस फेलियर से ही सीख लेकर उन्होंने 2015 में मीशों की शुरुआत की। यह एक ऐसी कंपनी थी छोटे व्यापारियों को मार्केट प्लेस बनाने का मौका दे रही है। Meesho देख ते ही देखते 40 हजार करोड़ रुपये की कंपनी बन गई। 2021 में मीशों की वैल्यू 40,000 करोड़ को पार कर गई थी। इतना ही नहीं उन्हें तत्कालीन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा यंग तुर्क स्टार्टअप ऑफ दे ईयर 2020 के लिए MSNBC से सम्मानित किया था।
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4. फाल्गुनी नायर (Nykaa)
सपने उन्हें की पूरे होते हैं, जो रिस्क लेने की हिम्मत रखते हैं। आज से करीब 12 साल पहले फाल्गुनी नायर ने भी ऐसा ही एक रिस्क दिया। 50 साल की उम्र में फाल्गुनी ने अपनी 9 to 5 जॉब छोड़कर खुद का बिजनेस शुरु किया।
50 की उम्र में नौकरी छोड़कर शुरु किया खुद का स्टार्टअप (Nykaa Success Story)
9 फरवरी 1963 में मुंबई के एक गुजराती परिवार में फाल्गुनी नायर का जन्म हुआ। सिडेनहैम से बीकॉम करने के बाद उन्होंने AF फर्ग्युसन कंपनी के साथ अपना करियर शुरु किया। 1993 में वो कोटक महिंद्रा बैंक से जुड़ीं। काफी सालों तक काम करने के बाद 2005 में उन्हें कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया गया।
जॉब के साथ जब फाल्गुनी MBA कर रही थी, तो उन्हें खुद का बिजनेस शुरु करने का विचार आया। 2012 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी, और ब्यूटी ब्रांड Nykaa की शुरुआत की।इस फील्ड में अपनी पहचान बनाने मुश्किल था, लेकिन अपनी मेहनत के दम पर फाल्गुनी बाकि ब्रांड्स को पीछे छोड़कर आगे बढती चली गईं। 2020 में इस कंपनी ने स्टीडव्यू कैपिटल से 100 करोड़ रुपये का फंड हासिल किया था।
वर्तमान में नायका एक फेमस ब्यूटी ब्रांड बन गया है, जिसे हर महीने 55 मिलियन यूजर्स विजिट कर रहे हैं। इस वेबसाइट पर आपको मेकअप, स्किन केयर और हेयर संप्लीमेंट के 1200 से अधिक ब्रांड्स मिल जाएंगे। फाल्गुनी नायर की Success Story स्टोरी उन लोगों के लिए प्रेरणा हैं, जो रिस्क लेने से डरते हैं। अगर फाल्गुनी नायर ने 50 साल की उम्र में नौकरी छोड़ने का रिस्क ना लिया होता, तो आज वो भारत के 100 अमीर लोगों में से एक ना होतीं।
5. दीपेंद्र गोयल (Zomato)
Zomato एक फूड डिलीवरी ऐप है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कैंटीन में लगने वाली लंबी लाइन की समस्या को हल करने के उद्देश्य से दीपेंद्र गोयल ने इस कंपनी की शुरुआत की थी। अब भारत में जोमेटो की शुरुआत कैसे हुई चलिए जानते हैं।
6th फेल ने खड़ा किया करोड़ों का कारोबार (Zomato Success Story)
जोमेटो के फाउंडर दीपेंद्र गोयल को पढ़ाई-लिखाई में खास इंटरेस्ट नहीं था। 6th और 11th में वो फेल भी हो गए थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा और मन लगाकर पढ़ाई करना शुरु किया। इसके बाद उन्होंने IIT क्लियर किया और 2006 में मल्टीनेशनल फर्म ‘ब्रेन एंड कंपनी’ में काम करना शुरु किया।
जॉब के दौरान कैंटीन में लंच के समय लगने वाली लंबी लाइन को देखकर दीपेंद्र गोयल के मन में एक ऐसा ऐप बनाने का आइडिया आया, जहां लोग ऑनलाइन मैन्यू देखकर ऑर्डर दे सकें। 2008 में दीपेंद्र ने अपने दोस्त पंकज चड्ढा के साथ मिलकर Foodiebay ( वर्तमान नाम Zomato ) नाम की वेबसाइट खोली। उस समय इस वेबसाइट पर रेस्तरां की डिटेल्स देखने के साथ-साथ उन्हें रेटिंग भी दे सकते थे। धीरे-धीरे ये वेबसाइट फेसम होने लगी, और 2010 में दीपेंद्र गोयल ने अपनी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से Foodiebay पर काम करना शुरु कर दिया।
2010 में इंफोएज के फाउंडर संजीव बिखचंदानी ने इस कंपनी में 1 मिलियन डॉलर का निवेश किया, और इसी साल कंपनी का नाम बदलकर Zomato रख दिया। 2015 में जियो के आने के बाद हर किसी के पास इंटरनेट की उपलब्धता हो गई। इसके बाद ज्यादा से ज्यादा लोग जोमेटो को विजिट करने लगे। इसके बाद इस ऐप पर लोगों को फूड डिलीवरी की सुविधा उपलब्ध करवाई जाने लगी। भारत में सफलता मिलने के बाद दीपेंद्र ने इस ऐप की सुविधा को और भी देशों में पहुंचाया। आज जोमेटो ब्राजील, न्यूजीलैंड, फिलिपींस, आस्ट्रेलिया जैसे 24 देशों में अपनी सुविधाए दे रही हैं।
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6. भावेश अग्रवाल (Ola Cabs)
भावेश अग्रवाल Ola Cabs के फाउंडर है। इन्होंने अपने दोस्त अंकित भाटी के साथ मिलकर इस ऐप की शुरुआत की। IIT बॉम्बे से ग्रेजुएट होने के बाद भावेश ने माइक्रोसॉफ्ट में जॉब के साथ अपने करियर की शुरुआत की। यहां दो साल काम करने के बाद उन्होंने 2 पेटेंट फाइल किए। जिसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में अपने 3 जर्नल प्रकाशित किए। कुछ अलग करने की चाह में उन्होंने औला कैब्स की शुरुआथ की।
टैक्सी ड्राइवर से झगड़ा होने के बाद आया Ola Cabs का आइडिया (Ola Cabs Success Story)
भावेश को Ola Cabs का आइडिया बैंग्लुरू से बांदीपुर के सफर के दौरान एक टैक्सी ड्राइवर से झगड़े के बाद आया। दरअसल, ज्यादा किराया मांगने पर भावेश की टैक्सी ड्राइवर से लड़ाई हो गई थी, जिसने उन्हें बीच रास्ते में ही उतार दिया। इस घटना के बाद उन्होंने एक ऐसे ऐप को डेवलप करने के बारे में सोचा जो लोगों को तय कीमत पर उनकी मंजिल तक पहुंचाए।
2011 में भावेश और अंकित ने मिलकर Ola Cabs की शुरुआत की। शुरु-शुरु में उन्हें ज्यादा सपोर्ट नहीं मिला। शुरुआत में उन्होंने कस्टमर्स की कॉल्स सुनने के अलावा, खुद कैब चलाकर ग्राहकों को कैब सर्विस भी दी। देखते ही देखते कुछ सालों में ओला भारत में परिवहन विकल्पों का सबसे बड़ा नेटवर्क बन गया। आज ओला ना सिर्फ कैब सर्विस उपलब्ध करवा रही है, बल्कि इलेक्ट्रिक व्हीकल सेगमेंट पर भी फोकस कर रही है। भावेश आज भारत के युवा अरबपतियों में से एक हैं, जिनकी कुल संपत्ति 11700 (2022) करोड़ रुपये है।
7. गजल अलघ और वरुण अलघ (Mamaearth)
Mamaearth आज भारत में एक जाना माना ब्रांड बन चुका है, लेकिन इसकी स्थापना की स्टोरी आपको थोड़ा इमोशनल कर देगी। क्योंकि शायद अगर 2016 में भारत में टॉक्सिन फ्री बेबी प्रोडक्ट मिल रहे होते, तो इस कंपनी की शुरुआत कभी होती ही ना।
बेटे को बचाने के लिए खोली कंपनी, आज मिल रहा है करोड़ो का मुनाफा (Mamaearth Success Story)
दरअसल, Mamaearth की को-फाउंडर ग़जल अलघ के बेटे अगस्त्य को बचपन से ही स्किन प्रॉबलम थी, लेकिन उस समय भारत में टॉक्सिन फ्री बेबी प्रोडक्ट नहीं मिलते थे। ऐसे में गजल को विदेश से ये प्रोडक्ट मंगवाने पड़ते थे।
इसी समस्या का समाधान निकालने के लिए गजल ने अपने पति वरुण अलघ के साथ मिलकर 2016 में Mamaearth की शुरुआत की। यह कंपनी भारत में टॉक्सिन फ्री बेबी प्रोडक्ट्स उपलब्ध करवाने लगी । मामाअर्थ की मदर कंपनी होनासा कंज्यूमर प्राइवेट लिमिटेड के थी। मामा अर्थ की स्थापना के 6 साल बाद ही होनासा कंज्यूमर साल 2022 में यूनिकॉर्न बन गया । इस कंपनी ने उस समय सिकोइया कैपिटल के नेतृत्व में 5.2 करोड़ रुपये जुटाकर यह मुकाम हासिल किया था।
गजल और वरुण 25 लाख रुपये से इस बिजनेस की शुरुआत की थी, लेकिन आज इस कंपनी का सालाना रेवेन्यू लगभग 1000 करोड़ के पार पहुंच गया है। मामाअर्थ अब बेबी प्रोडक्ट्स के अलावा ब्यूटी प्रोडक्ट्स भी बना रही है।
8. फणींद्र सामा (Red Bus)
5 लाख रुपये के शुरुआती निवेश से फणींद्र सामा ने रेडबस (Red Bus) कंपनी की शुरुआत की थी। आज इस कंपनी का कारोबार 6985 करोड़ रुपये ( लगभग 7 करोड़ रुपये ) तक पहुंच चुका है।
Red Bus से आसान हुई टिकिट बुकिंग प्रोसेस (Redbus Success Story)
तेलंगाना के निजामाबाद में रहने वाले फणींद्र सामा ने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस से ग्रेजुएशन पूरा किया और जॉब करने लगे । फणींद्र शुरु से ही बिजनेस करना चाहते थे। एक बार त्योहार के सीजन में टिकट बुक करने के लिए उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ी।
इसके बाद उनके मन में एक ऐसी कंपनी बनाने का आइडिया आया जो टिकट बुक करने की प्रक्रिया को आसान बना दे। इसी सोच से जन्म हुआ रेडबस का। 2006 में फणींद्र सामा ने अपने दोस्त, सुधाकर पसुपुनुरी और चरण पद्मराजू के साथ मिलकर रेडबस की शुरुआत की।
2007 में रेडबस को 1 मिलियन डॉलर की फंडिंग मिली, जिसके बाद ये कंपनी तेजी से ग्रोथ करने लगी। 2013 में रेडबस को दक्षिण अफ्रीका के नैस्पर्स और चीन के टेनसेंट के ज्वाइंट वेंचर में इबिबो के द्वारा 828 करोड़ रुपये में खरीद लिया गया।
9. अलबिंदर ढींढसा (Blinkit)
डिलीवरी की दुनिया में Blinkit का नाम तो आपने सुना ही होगा, यह ऐप अपनी क्विक सर्विस के लिए जाना जाता है । 2013 में इस कंपनी की शुरुआत अलबींदर ढींढसा और सौरभ कुमार ने मिलकर ‘वन-नंबर’ के रुप में की थी। जिसे बाद में ग्रोफर्स के नाम से जाना गया।
Zomato की नौकरी छोड़कर शुरु किया Blinkit (Success Story of Blinkit)
IIT दिल्ली से पासआउट होने के बाद अलबिंदर ढींडसा ने कैलिफोर्निया की कंपनी ‘URS कॉर्पोरेशन’ में जॉब की। इसके बाद 2007 में उन्होंने ‘कैम्ब्रिज सिस्टमैटिक्स’ में बतौर सीनियर एसोसिएट काम करना शुरु कर दिया। यहां उनकी मुलाकात सौरभ जैन से हुई। कुछ समय बाद अलबिंदर ने अपनी जॉब छोड़कर MBA किया और वापस भारत आ गए।
यहां आकर उन्होंने जोमेटो में काम करना शुरु कर दिया। 2013 के शुरुआती साल में अलबिंदर ने महसूस किया कि लोगों को घर तक खाना ऑर्डर किया जा रहा है, घर बैठे कैब बुक हो रही है, लेकिन राशन और रोजमर्रा की चीजों को लोगों तक पहुंचाने के लिए कोई भी प्लेटफॉर्म नहीं है।
इसी समस्या का समाधान करने के लिए अलबिंदर ढींडसा ने जोमेटो की जॉब छोड़ी और सौरभ कुमार के साथ मिलकर ‘वन-नंबर’ ऐप का निर्माण किया। कुछ महीनों बाद इसका नाम ग्रोफर्स हो गया, औऱ वर्तमान में इसे ब्लिंकिट के नाम से जाना जाता है।
आज ब्लिंकिट से आप 10-15 मिनट में घर बैठे कोई भी सामान मंगा सकते हैं। कंपनी के रेवेन्यू की बात करें तो 2023-24 में Blinkit का सालाना रेवेन्यू 769 करोड़ रुपये है। कंपनी की वैल्युएशन 13 बिलियन डॉलर ( 1 लाख करोड़ ) है।
10. दीप कालरा (Make My Trip)
दीप कालरा Make My Trip के फाउंडर हैं। दिल्ली के सेंट स्टीफेंस से ग्रेजुएशन और IIM अहमदाबाद से MBA करने के बाद दीप कालना ने ABN एमरो बैंक में नौकरी की। नौकरी से परेशान होने के बाद दीप ने 3 साल का ब्रेक लिया। लंबे समय के ब्रेक के बाद उन्होंने Make My Trip की स्थापना की, जिसने ट्रैवल की दुनिया में क्रांति ला दी।
समस्या से पैदा किया बिजनेस (Make My Trip Success Story)
सफर के दौरान टिकट के लिए लगने वाली लंबी लाइन को देखकर दीप कालरा के दिमाग में एक ऐसी वेबसाइट बनाने का विचार आया, जो लोगों को घर बैठे टिकट बुकिंग की सुविधा दे। 2000 में दीप कालरा ने अपने दोस्तों केयूर जोशी, सचिन भाटिया और राजेश मागो के साथ मिलकर Make My Trip वेबसाइट की शुरुआत की थी। 2005 में इस कंपनी ने 10 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई, तो वहीं 2006 में 13 मिलियन डॉलर की। देखते ही देखते कंपनी की फंडिंग बढ़ने लगी, जिसके बाद 2016 में कंपनी ने अपना IPO लॉन्च किया, जिससे कंपनी ने 330 मिलियन डॉलर जुटाए।
फंडिंग मिलने के बाद कंपनी ने अपनी सुविधाएं बढ़ाना शुरु कर दिया। अब इस वेबसाइट पर ट्रेन, हवाई यात्रा की टिकट के अलावा, होटल्स की बुकिंग, ट्रैवल पैकेज जैसी सुविधाए भी मिलनी लगी। वर्तमान में मेक माय ट्रिप देश की सबसी बड़ी ऑनलाइन ट्रैवल कंपनी है, जिसका मार्केट कैप 3 बिलियन डॉलर के आसपास है।
निष्कर्ष
कवि सोहन लाल द्विवेदी कहते हैं कि ‘लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती’। अगर आप किसी काम को करते हैं, तो मुश्किलें आपकी राहों में आएंगी, लेकिन आप उन मुश्किलों से डर गए, तो आप कभी भी सफलता हासिंल नहीं कर पाएंगे।
सफलता हमेशा असफलता का दामन पकड़े आती है। तो अगर आप आज असफल हो रहे हैं, तो उम्मीद ना छोड़े, सही दिशा में कोशिश करते रहें। एक ना एक दिन सफलता आपको जरुर मिलेगी। आज अपने दर्शकों को मोटिवेट करने के लिए हमने भारत के 10 उद्योगपतियों की सफलता की कहानियां बताईं। उम्मीद है कि ये कहानियां पढ़कर आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा जरुर मिली होगी। अगर आर्टिकल पसंद आया हो, तो इसे अपने दोस्तों और परिवारजनों के साथ शेयर जरुर करें।
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